(1). ‘आविन्यों’ शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर : अशोक वाजपेयी ।
(2). लेखक का मूल निवास स्थान कहाँ है ?
उत्तर : सागर, मध्यप्रदेश
(3). लेखक के माता-पिता का नाम क्या है ?
उत्तर : निर्मला देवी और परमानंद वाजपेयी ।
(4). ‘बीलनव्व ल आविन्यों’ का मतलब क्या है ?
उत्तर : आविन्यों का नया गाँव ।
(5). ला शत्रूज़ क्या है ?
उत्तर : एक ईसाई मठ ।
(6). आविन्यों में कवि कितने दिनों तक रहे ?
उत्तर : करीब 19 दिनों तक
(7). लेखक ने आविन्यों में कितनी कविताएँ तथा कितनी गय रचनाएँ की ?
उत्तर : 35 कविताएँ और 27 गद्य रचनाएँ।
(8). लोग नदी चेहरा कैसे हो जाते हैं ?
उत्तर : नदी के पास बैठकर ।
(9). कविता किससे भरी होती है ?
उत्तर : शब्दों से।
(10). नदियाँ किससे भरी होती हैं ?
उत्तर : जल से ।
(11). कवि अशोक वाजपेयी के अनुसार कविता कैसी है?
उत्तर : जैसी नदी है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
(1). आबिन्यों क्या है और वह कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर : आविन्यो एक पुराना शहर है। वह दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा हुआ है जहाँ कभी कुछ समय के लिए पोप की राजधानी थी।
(2). हर बरस आबिन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है ?
उत्तर : हर बरस आविन्यों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग समारोह हुआ करता है।
(3). लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे? वहाँ उन्होंने क्या देखा-सुना ?
उत्तर : लेखक आविन्यों रंग समारोह में पीटर थुक के विवादास्पद ‘महाभारत’ की पहली प्रस्तुति देखने गए थे। उन्हें वहाँ से निमंत्रण मिला था उस प्रस्तुति को देखने के लिए। यहाँ उन्होंने पत्थरों की एक खदान में उसकी प्रस्तुति देखी जो आविन्यों से कुछ किलोमीटर दूरी पर था वह प्रस्तुति लेखक को सच्चे अर्थों में महाकाव्या लगा।
वे यहाँ कुछ दिन रुके। यहाँ उन्होंने आर्क विशप के पुराने आवास के बड़े से आंगन में कुमार गन्धर्व का एक गीत भी सुना जिसकी बन्दिश है दुमद्रुम लता लता। लेखक ने वहाँ देखा कि इस समारोह के दौरान वहाँ के अनेक चर्च और पुराने स्थान रंगस्थलियों में बदल जाते हैं।
(4). ला शत्रूज क्या है और वह कहाँ अवस्थित है ? आजकल उसका क्या उपयोग होता है ?
उत्तर : ला शत्रूज काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ है। वह रोन नदी के दूसरी ओर आविन्यों का एक और हिस्से में अवस्थित फ्रेंच शासकों के पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किले में अवस्थित है।
आजकल इसका उपयोग एक कलाकेन्द्र के रूप में होता है। यह केन्द्र इन दिनों रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है। रंगकर्मी, रंगसंगीतकार, अभिनेता, नाटककार आदि वहाँ जाते हैं और पुरानी ईसाई सन्तों के चैम्बर्स में कुछ अवधि के लिए रहकर सारा समय अपना रचनात्मक काम करने में बिताते हैं।
प्रश्न 5. ला शत्रूज का अंतरंग विवरण अपने शब्दों में प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट कीजिए की लेखक ने उसके स्थापत्य को ‘मौन का स्थापत्य’ क्यों कहा है ?
उत्तर : ला शत्रूज़ में जो कलाकार आते हैं, वे ईसाई सन्तों के चैम्बर्स में अपनी कला को रचनात्मक आयाम देने में बिताते हैं। इसमें दो दो कमरों के चैम्बर्स बड़े सुसज्जित हैं उसमें चौदहवीं सदी जैसा फर्नीचर है परन्तु रसोईघर और स्नानागार आधुनिक है। एक अत्याधुनिक संगीत व्यवस्था भी है। चैम्बरों के मुख्य द्वार कब्रगाह के चारों ओर बने गलियारों में खुलते हैं पर पीछे आँगन भी है और पिछवाड़े से एक दरवाजा भी। जो लोग यहाँ रहते हैं दिन में अपनी सुविधानुसार भोजन करते हैं परन्तु रात में एक साथ भोजन करते हैं। दिन में लगभग पचास सैलानी घूमने आते हैं। यह स्थान बेहद शान्त और नीरव है। इसलिए लेखक ने इसे ‘मौन का स्थापत्य’ कहा है।
(6). लेखक आविष्यों क्या साथ लेकर गए थे और यहाँ कितने दिनों तक रहे?
उत्तर : लेखक की उपलब्धि क्या रही? लेखक आविन्यों अपने साथ हिन्दी का टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें और टेप्स लेकर गए थे। थे वहाँ 19 दिनों तक रहे।
लेखक की इस अल्पावधि की उपलब्धि रही कि उन्होंने वहाँ मात्र 19 दिनों में पैतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य रचनाएँ लिखी।
(7). प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है?
उत्तर : प्रतीक्षा करते हैं पत्थर शीर्षक कविता में कवि पत्थर का मानवीकरण इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उस शान्त नीरव स्थान में पत्थर किसी की प्रतीक्षा करते हैं।
वे कहते हैं कि पत्थर किसी देवता या समय की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। पता नहीं पत्थर इतने धैर्य से किसकी प्रतीक्षा करते हैं। हर पल झरता हुआ, उनकी शिराएँ भी छिलती रहती है फिर भी पत्थर प्रतीक्षा में लीन रहते हैं। वर्षा होती है, पत्तों की आवाजें होती है, धूप होती है बनी अंधेरी रात प्राचीन धुन को दुहराते हुए पत्थर प्रतीक्षा में लीन रहते हैं। अपने सपनों के साथ कमजोर पड़ते समय छिनती हुई भाषा, अँधेरा घेर लेता है पत्थरों को, पर ये अपलक मैदान में प्रतीक्षा करते रहते हैं। ये सिर नहीं झुकाते पर प्रार्थना करते हैं. कामना करते है, शब्द नहीं परन्तु कविता लिखते है, पता नहीं किसकी प्रतीक्षा करते हैं पत्थर।
(8). आबिन्यों के प्रति लेखक कैसे अपना सम्मान प्रदर्शित करते हैं?
उत्तर : लेखक आविन्यों के प्रति यह कहते हुए सम्मान प्रकट करते हैं कि वे सुन्दर, निदिड, सघन, सुनसान दिन और राते थी मय, पवित्रता और आसक्ति से मरी हुई। यह पुस्तक आविन्यो उन सबकी स्मृति का दस्तावेज है। आविन्यों को उसी के एक मठ में रहकर लिखी गई. कवि-प्रणति भी हर जगह हम कुछ पाते, बहुत सा गवाते हैं। ला शत्रूज में जो पाया उसके लिए गहरी कृतज्ञता मन में है और जो गँवाया उसकी गहरी पीड़ा भी।
(9). मनुष्य जीवन से पत्थर की क्या समानता है ?
उत्तर : मनुष्य जीवन से पत्थर की यह समानता है कि यह भी किसी मनुष्य की तरह किसी की प्रतीक्षा करता है, गीत गाता है, सपने देखता है, कविता लिखता है, ईश्वर की प्रार्थना करता है तथा संकटों से घिरता है, फिर भी पथराता नहीं है।
(10). इस कविता से आप क्या सीखते हैं?
उत्तर:- इस कविता से हम धैर्य रखना, संकटों से नहीं घबराना दुःख झेलना और अपने लक्ष्य के प्रति अटल रहना सीखते हैं।
(11). नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को क्या अनुभव होता है ?
उत्तर :- नदी के तट पर बैठे हुए कवि को अनुभव होता है कि जल स्थिर है और तट ही वह रहा है। नदी के तट पर बैठना भी नदी के साथ बहना है। कई बार नदी स्थिर होती है, हम तट पर बैठे रहते हैं, नदी के पास होना नदी होता है।
(12). नदी तट पर लेखक को किसकी याद आती है और क्यों ?
उत्तर:- नदी तट पर लेखक को विनोद कुमार शुक्ल की याद आती है क्योंकि नदी तट पर लेखक को लगता है कि वे नदी चेहरा हो जाते हैं। कवि विनोद कुमार शुक्ल ने एक कविता लिखी है जिसका नाम है नदी-चेहरा लोगों। इसलिए उन्हें उनकी याद आती है।
(13). नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है ?
उत्तर:- नदी और कविता में कई समानताएँ हैं। जैसे नदी जल-रिक्त नहीं होती, वैसे ही कविता शब्द रिक्त नहीं होती। न नदी के किनारे, न ही कविता के पास हम तटस्थ रह पाते हैं। नदी और कविता में हम बरबस ही शामिल हो जाते हैं। जैसे हमारे चेहरों पर नदी की आभा आती है, वैसे ही हमारे चेहरों पर कविता की चमक आती है। निरन्तरता, नदी और कविता दोनों में हमारी नश्वरता का अनन्त से अभिषेक करती है।
(14). किसके पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता है और क्यों ?
उत्तर : नदी और कविता के पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि अगर हम खुलेपन से उसके पास जाते हैं तो उसकी अभिभूति से बच नहीं सकते हैं। नदी और कविता में हम बरबस शामिल हो जाते हैं।