प्रश्न 1. लेखक का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर : उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के छोटे से गाँव ऊँचगाँव सानी में।
प्रश्न 2. साहित्य की परम्परा का ज्ञान किसके लिए आवश्यक है ?
उत्तर : जो लोग साहित्य में युग परिवर्तन करना चाहते हैं।
प्रश्न 3. प्रगतिशील आलोचना का विकास कैसे होता है ?
उत्तर : साहित्य की परम्परा के ज्ञान से।
प्रश्न 4. साहित्य के निर्माण में किनकी भूमिका निर्णायक है ?
उत्तर प्रतिभाशाली मनुष्यों की ।
प्रश्न 5. कौन कभी नहीं मरता है ?
उत्तर : साहित्यकार ।
प्रश्न 6. कोई भी जाति सांस्कृतिक रूप से कब तक अविभाजित रहेगी ?
उत्तर : जब तक उसे अपनी साहित्यिक परम्परा का ज्ञान रहेगा।
प्रश्न 7. राष्ट्र के गठन में किसका प्रवाह बहुत बड़ी निर्धारक शक्ति है ?
उत्तर : इतिहास का अविच्छिन्न प्रवाह।
प्रश्न 8. प्रस्तुत निबंध ‘परम्परा का मूल्यांकन’ लेखक की किस कृति से संकलित है ?
उत्तर : ‘परम्परा का मूल्यांकन से ही।
प्रश्न 9. ‘प्रेमचंद और उनका युग’ किसकी कृति है ?
उत्तर : रामविलास शर्मा ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. परम्परा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ?
उत्तर : जो लोग साहित्य में युग परिवर्तन करना चाहते हैं, जो लकीर के फकीर नहीं हैं, जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते हैं, उनके लिए परम्परा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है, क्योंकि ये लोग समाज में बुनियादी परिवर्तन करके वर्गीन शोषणमुक्त समाज की रचना करना चाहते हैं। अपने सिद्धान्तों को ऐतिहासिक भौतिकवाद के नाम से पुकारते हैं। जो महत् ऐतिहासिक भौतिकवाद के लिए इतिहास का है, वही आलोचना के लिए गारिता की परम्परा का है।
प्रश्न 2. परम्परा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्त्वपूर्ण मानता है ?
उत्तर : परम्परा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक की लेखक इसलिए महत्त्वपूर्ण मानते है क्योंकि जो साहित्य जिन वर्गों की देख-रेख में रचा गया है वह उनके वर्गहितों को प्रतिथिम्वित करता है। जैसे श्रमिक वर्ग का प्रतिविद हमे शोषक वर्गों के विरुद्ध मिलता है। इससे हमें यह पता चलता है कि यह जनता के लिए कितना उपयोगी है।
प्रश्न 3. साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती, जैसे समाज में लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती, जैसे समाज में से लेखक का आशय है कि सामाजिक विकास क्रम में सामन्ती सभ्यता की अपेक्षा पूँजीवादी सभ्यता को अधिक प्रगतिशील कहा जा सकता है। परन्तु, साहित्य विकास प्रक्रिया में यह आवश्यक नहीं है कि सामन्ती सभ्यता की अपेक्षा पूँजीवादी सभ्यता का साहित्य ज्यादा अच्छा हो, क्योंकि संभव है कि पूँजीवादी सभ्यता के साहित्य की अपेक्षा सामन्ती सभ्यता का साहित्य ही अच्छा हो। अथवा, यह भी हो सकता है कि वह लेखक या कवि की मौलिक रचना हो और बाद वाला नकल हो नकल करके लिखा गया साहित्य अधम कोटि का साहित्य होता है। यह भी सम्भव है कि पूँजीवादी सभ्यता का साहित्य अच्छा हो, क्योंकि हो सकता है कि सामन्ती सभ्यता के रचनाकार बिकाऊ हो। साहित्य में कुछ भी सम्भव है।
प्रश्न 4. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक की राय से साहित्य का भावनात्मक पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है। आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी अपना जीवन बिताता है। साहित्य में उसकी बहुत-सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती हैं जो उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं। इस बात को बार-बार कहने में कोई हानि नहीं है कि साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है, अपितु उसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसको भावनाएँ भी व्यंजित होती हैं।
प्रश्न 5. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टान्तों द्वारा प्रमाणित करता है ?
उत्तर : लेखक मानव चेतना को आर्थिक सम्बन्धों से प्रभावित मानते हुए उसकी सापेक्ष स्वाधीनता स्वीकार करता है। आर्थिक संबंधों से प्रभावित होना एक बात है, उनके द्वारा चेतना का निर्धारित होना और बात है। भौतिकवाद का अर्थ भाग्यवाद नहीं है। सब कुछ परिस्थितियों द्वारा अनिवार्यतः निर्धारित नहीं हो जाता। यदि मनुष्य परिस्थितियों का नियामक नहीं है तो परिस्थितियाँ भी मनुष्य का नियामक नहीं। दोनों का सम्बन्ध द्वन्द्वात्मक है। यही कारण है कि साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। यथा गुलामी अमरीका में थी और गुलामी एथेन्स में भी थी, किन्तु एवेन्स की सभ्यता ने सारे यूरोप को प्रभावित किया और गुलामों के अमरीकी मालिकों ने मानव संस्कृति को कुछ भी नहीं दिया।
प्रश्न 6. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है ?
उत्तर:- साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक इन खतरों से आगाह करते हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिभाशाली मनुष्य जो करते हैं वह सब अच्छा ही होता है, या उनके श्रेष्ठ कृतित्व में कोई दोष नहीं होता। कला का पूर्णतः निर्दोष होना भी एक दोष है। ऐसी कला निर्जीव होती है। इसीलिए प्रतिभाशाली मनुष्यों की अद्वितीय उपलब्धियों के बाद कुछ नया और उल्लेखनीय करने की गुंजाइश बनी रहती है।
प्रश्न 7. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं ?
उत्तर: राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी होते हैं। जैसे हम ब्रिटिश साम्राज्य को लें तो वह तो समाप्त हो गया परन्तु शेक्सपियर, मिल्टन, शेली इत्यादि विश्व की संस्कृति के आकाश में जगमगाते ही रहते हैं। यहाँ तक कि इनके प्रकाश में बढ़ोत्तरी हुई है न कि कमी अर्थात् राजनीति में बदलाव सम्भव है लेकिन साहित्यकार जो कुछ हमें दे गए उसमें बदलाव सम्भव नहीं है, वह स्थायी है।
प्रश्न 8. लेखक किस प्रसंग में जातीय अस्मिता का उल्लेख करता है और उसका क्या महत्व बताता है ?
उत्तर :- साहित्य के विकास में प्रतिभाशाली मनुष्यों के महत्व के प्रसंग में लेखक ने जातीय अस्मिता का उल्लेख किया है। वे कहते हैं कि साहित्य के विकास जनसमुदायों और जातियों की विशेष भूमिका होती है। जनसमुदाय जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में प्रवेश करते हैं तब उनकी अस्मिता नष्ट नहीं होती चल्कि वे अपने गुणों को फैलाती है।
प्रश्न 9. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ?
उत्तर : जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप में अंतर होते हुए भी जब राष्ट्र पर कोई मुसीबत आती है तब उन्हें अपनी राष्ट्रीय अस्मिता का ज्ञान बहुत अच्छी तरह से हो जाता है। जब देश पर कोई खतरा मँडराता है तो पूरा राष्ट्र मिलकर उससे लोहा लेता है। जैसे भारत में अनेक जातियाँ और अनेक भाषाओं के लोग रहते हैं, परन्तु स्वतंत्रता संग्राम में सबने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया था और अपनी एकात्मता का पाठ पढ़ा था।
प्रश्न 10. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ?
उत्तर:- बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि किसी भी राष्ट्र के विकास में कवियों की ऐसी निर्णायक
भूमिका नहीं रही जैसी इस देश में व्यास और वाल्मीकि की है।
प्रश्न 11. भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है। कैसे ?
उत्तर : भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है। इस संस्कृति के निर्माण में इस देश के कवियों का सर्वोच्च स्थान है। इस देश की संस्कृति से रामायण और महाभारत को अलग कर दें तो भारतीय साहित्य की आन्तरिक एकता टूट जाएगी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है ? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर : समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है। पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का इतना अपव्यय होता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है। देश के साधनों का सबसे अच्छा उपभोग समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है।
इस प्रसंग में लेखक का विचार है कि यदि समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर जारशाही रूस नवीन राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित हो सकता है, तो भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता कितना पुष्ट होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। अनेक राष्ट्र जो भारत से पिछड़े हुए थे सामाजिक व्यवस्था के कारण उसके विकास में तेजी आई है। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है।
प्रश्न 2. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परम्परा की क्या भूमिका हो सकती है? विचार करें।
उत्तर : निबंध का समापन करते हुए लेखक स्वप्न देखते हैं कि पूरा राष्ट्र साक्षर हो जाएगा। पूरा राष्ट्र संस्कृत की मूल रचना को बिना अनुवाद के पढ़ेंगे, तमिल की रचना भी पूरे देश में उसी तरह पढ़ी जाएगी। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में सम्भव है और साहित्य की परम्परा का ज्ञान भी समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है।
इसे साकार करने में परंपरा की ही भूमिका होगी। समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति से नाता नहीं तोड़ती अपितु उसे आत्मसात करके आगे बढ़ती है। जब पूरे देश में सभी भाषाओं का अध्ययन होगा तब सभी भाषाओं से हमारा परिचय गहरा होगा। तब मानव संस्कृति की विशद धारा में भारतीय साहित्य की गौरवशाली परम्परा का नवीन योगदान होगा।