प्रश्न 1. ‘नागरी लिपि’ शीर्षक निबंध किनकी रचना है ?
उत्तर : गुणाकर मुले की।
प्रश्न 2. लेखक की प्रारंभिक शिक्षा किस भाषा में हुई ?
उत्तर : मराठी भाषा में।
प्रश्न 3. प्रस्तुत कहानी ‘नागरी लिपि’ लेखक की किस कृति से संकलित है ?
उत्तर : “भारतीय लिपियों की कहानी से।
प्रश्न 4. नेपाल की भाषा किस लिपि में लिखी जाती है ?
उत्तर : नागरी लिपि में।
प्रश्न 5. नागरी लिपि का जन्म किस लिपि से हुआ है ?
उत्तर : प्राचीन ब्राह्मी लिपि से।
प्रश्न 6. दक्षिण भारत में नागरी लिपि को क्या कहते हैं ?
उत्तर : नंदिनागरी ।
प्रश्न 7. लेखक ने ‘बॉग्ला लिपि’ से नागरी लिपि का संबंध किस रूप में बताया है ?
उत्तर : बहन के रूप में।
प्रश्न 8. गोमतेश्वर का पुतला कहाँ खड़ा है ?
उत्तर : कर्नाटक प्रदेश के श्रवणबेलगोला में।
प्रश्न 9. गुर्जर-प्रतिहार राजाओं के लेखों की लिपि कौन-सी थी?
उत्तर : नागरी लिपि ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर : जब दो सदी पहले देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगी तब इनके अक्षरों में स्थिरता आयी है।
प्रश्न 2. देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर : हिंदी भाषा तथा इसकी विविध बोलियाँ, नेपाली, मराठी तथा संस्कृत भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
प्रश्न 3. लेखक ने किन-किन भारतीय लिपियों से देवनागरी लिपि का संबंध बताया है ?
उत्तर : लेखक ने गुजराती, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम लिपियों देवनागरी लिपि का संबंध बताया है।
प्रश्न 4. नंदी नागरी किसे कहते हैं? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?
उत्तर : देवनागरी लिपि को ही दक्षिण भारत में नंदिनागरी कहते हैं। देवनागरी लिपि के काल तथा उसके विस्तार के प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है।
प्रश्न 5. नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं। उनके विवरण दें।
उत्तर : नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे के दक्खन प्रदेश से ही मिलते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि दक्षिण भारत में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का सामांगड दानपत्र (754 ई.) है। दंतिदुर्ग ने ही राष्ट्रकूट शासन की नींव डाली थी अर्थात् नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 6. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है?
उत्तर : ब्राह्मी और सिद्धम लिपि के अक्षरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन, नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरो रेखाएँ उतनी ही लंबी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई होती है।
प्रश्न 7. उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?
उत्तर : उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखंड) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरि शासकों के लेख प्राचीन नागरी लिपि में प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 8. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं? लेखक इस संबंध में क्या बताता है ?
उत्तर: चंद्रगुप्त विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम देव था, इसलिए गुप्तों की राजधानी ‘पाटलिपुत्र’ या ‘पटना को भी देवनगर कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि नागरी को देवनागरी लिपि कहते हैं।
लेखक इस संबंध में बताते हैं कि यह सिर्फ एक मत है। हम सप्रमाण नहीं बता सकते कि यह देवनागरी नाम कैसे अस्तित्व में आया ।
प्रश्न 9. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?
उत्तर : नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का कहना है कि इसका जन्म प्राचीन ब्राह्मी लिपि से हुआ है। नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र को नगर कहते थे। अतः नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। यह संभव है कि बड़ा नगर प्राचीन पाटलिपुत्र अर्थात् आधुनिक पटना ही हो।
प्रश्न 10. नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है ?
उत्तर:- नागरी लिपि के साथ-साथ तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों का विकास हुआ था। लेखक इस संबंध में जानकारी देते हैं कि दक्षिण भारत की ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही प्राचीन ब्राह्मी लिपि से ही विकसित हुई हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर : निबंध के आधार पर अनेक विद्वानों का मत है कि दक्षिण भारत में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का सामांगड वानपत्र (754 ई.) है। प्रख्यात राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष के शासनकाल में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य (850 ई.) ने ‘गणितसार-संग्रह’ की रचना की थी। ग्यारहवीं सदी से नागरी लिपि में प्राचीन मराठी भाषा के लेख मिलने लग जाते हैं। अक्षी (कुलाबा जिला) से शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम) का एक शिलालेख (1012 ई.) मिला है, जो संस्कृत-मराठी भाषाओं में है और इसकी लिपि नागरी है। नागरी लिपि में लिखा गया ताम्रपट 1060 ई. का है। देवगिरि के यादव राजा रामचंद्र (13वीं सदी) के ताम्रपत्र में ‘ए’ और ‘ओ’ की मात्राएँ अक्षरों की बाईं ओर हैं। कल्याण के पश्चिमी चालुक्य नरेशों के लेख भी नागरी लिपि में हैं।
उत्तर भारत के गुर्जर प्रतिहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। मिहिर भोज, महेंद्रपाल आदि प्रख्यात प्रतिहार शासक हुए। मिहिर भोज (840-81 ई.) की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।
धारा नगरी का परमार शासक भोज अपने विधानुराग के लिए इतिहास में प्रसिद्ध है। इस राजा के बंसवाड़ा और बेतमा दानपत्र क्रमशः ‘कोंकणविजय’ तथा ‘कोंकणविजयपर्व के अवसरों पर दिए गए थे। बेतमा (इंदीर के समीप) दानपत्र 1020 ई. का है। 12वीं सदी के बाद हम उत्तर भारत के सभी हिंदू शासकों को देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करते हुए देखते हैं। यह भी देखा गया है कि महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अल्लाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि कुछ इस्लामी शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी लेख अंकित किए हैं।